फलक तक जहाँ शाम
बनती है दुल्हन,
जहाँ इस धरा से
छुप के मिलता है सूरज,
वहीँ हाँ वहीँ
बस वहीँ पर मिलूंगा,
तुम्हे ले चलूँगा
सुनहरी किरण में।
गगन में जहाँ चाँद
सोता है जी भर,
जहाँ चांदनी उससे
मिलती है प्रियतम,
वहीँ हाँ वहीँ
बस वहीँ पर मिलूँगा,
तुम्हें ले चलूँगा
सितारों में हमदम।
,,,,,(राज)
No comments:
Post a Comment