वीरभद्र और नारायण गाँव के बीच में स्थित चबूतरे पर बैठकर गपशप कर रहे थे। इतने में चमन नामक आदमी दौड़ा -दौड़ा वहां आया और कहा "नारायण जी, मुझपर आयी आपदा से आप ही मुझे बचा सकते हैं। मुझे अविलम्ब ही सौ अशर्फ़ियाँ चाहिए । दो -तीन महीने में ब्याज के साथ लौटा दूँगा"।
" मुझे तुम्हारी ईमानदारी कोई शक नहीं । फिर भी बात है पैसों की । अगर तुम्हारी ईमानदारी की सिफ़ारिश गाँव का कोई प्रमुख करे , तो पैसों का इंतजाम हो जायेगा" । कहते हुए नारायण ने वीरभद्र की ओर देखा ।
वीरभद्र ने तुरंत कहा "एक -दो शायद देरी हो , किन्तु चमन अपने वादे का पक्का है । जो रकम लेगा, वह अवश्य लौटाएगा । समझ लो , रकम तुम्हारी तिजोरी में महफ़ूज है ।"
उसी दिन शाम को नारायण ने चमन को सौ अशर्फ़ियां दी ।
दूसरे दिन गली में वीरभद्र और नारायण का आमना -सामना हुआ , तो वीरभद्र ने नारायण से कहा "उस चमन के बारे में बहुत सावधान रहना । उसके पीछे -पीछे घूमते -घूमते तुम्हारे चप्पल घिस जायेंगे वह इतनी आसानी से तुम्हारी रकम लौटाने वालों में से नही है ।"
" तो तुमने उसकी ईमानदारी के बारे में ऐसा क्यों कहा?" नारायण ने पूछा ।
"करूँ भी क्या ? दो सालों के पहले उसे बीस अशर्फ़ियाँ दी थी। उन्हें वापस लेने के लिए मेरे पास और कोई चारा ना रहा । कल शाम को तुम्हारी दी हुयी अशर्फ़ियों को लेकर जैसे ही गली में आया, मैंने उसे पकड़ लिया और बीस अशर्फ़ियाँ मैं सूद सहित वसूल कर लिया।" कहता हुआ वीरभद्र आगे बढ़ गया।