सांध्य बेला
आ गयी फिर सांध्य बेला,
छिप गया वह तट
जहाँ से पथ मिला था,
है नहीं स्पन्द
जैसे थक गया हूँ।
दीप भी अब जल गये हैं,
मैं खड़ा हूँ फिर अकेला।
तैर जायेगे फिर कई
पलकों में सपने,
सच नहीं होते कभी जो,
टूट कर बिखरेंगे ,
आयेगी जब प्रात बेला।
*********डॉ श्रवण कुमार(राज)
26/10/2016
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